बुधवार, 25 सितंबर 2013

अर्जुन ने कहा कि मेरे दस नाम हैं

अर्जुन के विविध नाम 



विराट नगर के राजकुमार उत्तर ने अर्जुन के कहने पर वे शस्त्र नीचे वृक्ष से उतार दिए। ब्रृहन्न्ला बने अर्जुन ने उसमें से एक कोदंड उठा कर उसकी प्रत्यंचा चढ़ाई । उत्तर ने पूछा कि ये शस्त्र किसके हैं ?ब्रृहन्न्ला अर्जुन ने कहा -- ' पांडवों के। ' उत्तर ने पुन: पूछा -- ' और पांडव कहाँ हैं ? वनवास के पश्चात् उन्हें अज्ञातवास के लिए जाना था। ' अर्जुन ने उत्तर को उत्तर देते हुवे कहा -- ' तुम्हारे यहाँ जो कंक के रूप में रह रहे हैं , वे युधिष्ठिर हैं। तुम्हारा रसोइया बल्लव मध्यम पांडव भीम हैं। मैंअर्जुन हूँ। ग्रंथिक नकुल है और तंतिपाल सहदेव है। समझ गये , हमने अपना अज्ञातवास तुम्हारे नगर में हीपूर्ण किया है। '


उत्तर को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। यह 
ब्रृहन्न्ला अर्जुन है ? नृत्य और गायन में लगा रहने वाला यह नपुंसक, अर्जुन है ? वह इसका प्रमाण चाहता था, उसे विश्वास नहीं हो रहा था। अर्जुन ने कहा , ' मेरे अर्जुन होने का जो प्रमाण मांगोगे , दूंगा। ' उत्तर ने शस्त्रों को रथ में रखने में अर्जुन की सहायता की। अर्जुन ने कहा -- ' अब तुम रथ में सारथी का स्थान सम्भालो। युद्ध मैं करूंगा। तुम्हें डर तो नहीं लगेगा ?' उत्तर कूद कर सारथि के आसन पर जा बैठा , ' नहीं। भय क्या होता है , मुझे पता नहीं है। मेरा तो जन्म- जन्मान्तरों से देखा गया , अपूर्ण स्वप्न पूरा हुवा है।

 वीरवर अर्जुन का सारथि बनना तो जाने कितने जन्मों के पुण्य का प्रभाव है। ' रथ चला तो उत्तर ने पूछा -- ' कौरव आपको पहचान तो नहीं जायेंगे ?' अर्जुन ने कहा --- ' हमारे अज्ञातवास का काल पूरा हो गया है , इसलिए मैं तो स्वयं ही प्रकट हो रहा हूँ। अपने नाम की घोषणा कर दूंगा। मेरा परिचय मेरा वेश अथवा मेरा परिधान नहीं है। राजकुमार ! मेरा परिचय मेरा गांडीव है। मेरा आचरण है। युद्ध में जब मेरे इस धनुष से बाण छूटेंगे , वे ही सबको मेरा परिचय देंगे। ' यदि आप अर्जुन हैं तो बताएं कि आपके कितने नाम हैं ? ' उत्तर ने पूछा।




अर्जुन ने कहा कि मेरे दस नाम हैं --- अर्जुनफाल्गुनजिष्णु , किरीटी , शवेतवाहन , बीभत्सु , विजय , कृष्ण , सव्यसाची और धनंजय। सब के प्रति सम-भाव रखने के कारण मैं अर्जुन हूँ। मेरा जन्म उत्तर-फाल्गुनी नक्षत्र में होने के कारण मैं फाल्गुन कहलाता हूँ। इन्द्र का पुत्र होने के कारण मैं जिष्णु हूँ। वैजयन्त ने मेरे सिर पर मुकुट रखा था , इसलिए मैं किरीटी कहलाता हूँ। मेरे रथ में श्वेत अश्व होने के कारण मैं श्वेतवाहन हूँ। मैं युद्ध में कोई बीभत्स कर्म नहीं करता , इसलिए मुझे बीभत्सु भी कहते हैं। मैं शत्रु को परास्त किए बिना नहीं लौटता , इसलिए विजय कहलाता हूँ। मेरा वर्ण श्यामल है और मैं लोगों के चित्त को आकर्षित कर लेता हूँ, इस लिए कृष्ण भी कहलाता हूँ। मैं अपने दायें और बाएं दोनों हाथों से गांडीव खींचता हूँ , इसलिए मेरा नाम सव्यसाची है। मैं अनेक देशों को जीतकर तथा कर रूप में धन का उपार्जन करने के कारण धनंजय कहा जाता हूँ। किन्तु राजकुमार उत्तर! नामों और उनका अर्थ जान लेना इस बात का पर्याप्त प्रमाण नहीं है कि मैं अर्जुन ही हूँ। मेरा वास्तविक परिचय तो मेरा धनुष ही होगा। वही मेरी शक्ति तथा मेरी विजय है।&&&&



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